शहीद वीर नारायण सिंह
जन्म : 1795 सोनाखान छत्तीसगढ़
मृत्यु : 1857
पिता : रामसाय
स्थान : सोनाखान छत्तीसगढ़ के पूर्व की ओर रायपुर जिले के
तहसील बलोदा बाजार वर्तमान स्थित है एक आदिवासी बाहुल गांव!
shahid veer narayan singh |
' जोंक नदी' के प्रवाह स्थल 'कुर्रुपाट डोंगरी' के नीचे स्थित "सोनाखान" के जमीदार 'रामसाय' जिन्होंने 1818 से 1819 के दौरान अंग्रेजों तथा भोंसले राजाओं के विरुद्ध तलवार उठाई थी हालांकि तत्कालीन कैप्टन मैक्सन ने विद्रोह को दबा दिया उस बिंझवार जमीदार के यहां जन्मे नारायण सिंह अपने पिता के समान ही दयावान ,निडर, वीर, साहसी व न्याय प्रिय थे!
नारायण सिंह के पूर्वज गोंड जाति के थे तथा बताया जाता है उनके पूर्वज सारंगढ़ के जमीदार के वंश के थे इनके पूर्वजों ने गोंड जाति से बिंझवार जात में जाती परिवर्तन किया!
बिंझवार जमीदार इष्ट देवता कुपाठ देव की पूजा करते थे जो सोनाखान के पश्चिम में स्थित कुरूपाट डोंगरी में निवास करते हैं कुर्रुपाट डोंगरी से पूरा सोनाखान एक नक्शे के समान प्रतीत होता है यहां एक स्थान ऐसा है जहां 12 महीने पानी रहता है!
स्थानी निवासियों के अनुसार आज भी दशहरा उत्सव के दिन पुराने गांव 1 नए बसे गांव के लोग कुर्रुपाट में पूजा करते हैं इसी पहाड़ी के बाजू में जोंक नदी कल कल करती बहती है!
1830 में पिताजी रामसाय जी की मृत्यु हो गई और 35 साल की उम्र में नारायण सिंह ने पिताजी की जमीदारी ग्रहण की उनकी जमीदारी 70 गांव में थी!
"एक क्रांतिकारी का इतिहास सामंतवाद और अंग्रेज
साम्राज्यवाद के खिलाफ एक जीवन प्राण की वीर गाथा"
साम्राज्यवाद के खिलाफ एक जीवन प्राण की वीर गाथा"
Add shahid veer narayan singh |
छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी
भारत देश ब्रिटिश ब्रिटिश शासन का गुलाम हो चुका था साथ ही साथ साहूकारों एवं महाजनोंका शोषण भी ग्रामीण किसानों के ऊपर बढ़ता जा रहा था!
1854 में ब्रिटिश शासन द्वारा नए ढंग से "टकोली " लागू किया गया इसे नारायण सिंह ने जनविरोधी एवं दमनकारी कहकर कड़ा विरोध किया तथा रायपुर के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर इलियट के द्वारा नारायण सिंह का विरोध किया गया इस वजह से नारायण सिंह अंग्रेजों के विरोधी हो गए!
1956 में आकार व सूखे की स्थिति उत्पन्न हो गई तथा ग्रामीण किसानों में भूखमरी के शिकार हो गए तत्कालिक साहूकारों एवं लालची महा जनों के लिए यह स्थिति अवसरवादी हो गई
जनता की भुखमरी और परेशानियों को देख कर नारायण सिंह ने कसडोल के महाजन से अनाज मांगा तथा ब्याज देने व फसल होने पर वापसी की शर्त पर अपनी बात रखी किंतु अनाज देने से महा जनों ने साफ इनकार कर दिया!
तब सभी गांवों की मुखिया को कुर्रुपाट मैं एकत्र कर नारायण सिंह ने सभी लोगों को एक स्वर में लड़ाई करने के लिए तैयार किया तथा नारायण सिंह के नेतृत्व में सभी एक साथ कसडोल की ओर चल पड़े!
" भुखसे कोई नहीं मरेगा ,भले ही लड़ाई के मैदान में लड़कर मरेंगे!"
छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी |
नारायण सिंह ने कसडोल की व्यापारी माखन के अनाजों से भरे गोदाम का ताला तोड़ अनाज निकालकर ग्रामीणों में बटवा दिया!
यह था जनता का जनता के लिए संग्राम!
व्यापारियों ने इसकी शिकायत डिप्टी कमिश्नर से कर दी तथा डिप्टी कमिश्नर ने गिरफ्तारी वारंट नारायण सिंह के लिए निकाल दी
24 अक्टूबर 18 56 में नारायण सिंह को संबलपुर से गिरफ्तार कर रायपुर जेल में बंद कर दिया गया!
फिर 18 57 में देशभर में ब्रिटिश शासन के खिलाफ उग्र आंदोलन की शुरुआत हो गई जिसमें झांसी की रानी ,तात्या टोपे ,नाना साहेब नेतृत्व कर रहे थे इसी बीच विद्रोह की खबर रायपुर जेल तक पहुंची और वीर नारायण सिंह अंग्रेजों को भगाने एवं साहूकारों महाजन ओं के शोषण से आजादी दिलाने के लिए आंदोलित हो उठे!
कुछ देशभक्त जेल कर्मियों की मदद से कारागार के बाहर तक सुरंग से तीन साथियों के साथ नारायण सिंह फरार होने में कामयाब हो गए
जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने 500 सैनिकों की एक बंदूकधारी सेना तैयार की तथा 20 अगस्त 18 57 को सोनाखान में स्वतंत्रता का बिगुल बजा दिया!
डिप्टी कमिश्नर एलियट ने स्मिथ के नेतृत्व में सेना की एक टुकड़ी सोना खान की और भेजी अंग्रेजों ने सोनाखान में घुसकर पूरे नगर को आग लगा दी नारायण सिंह ने कुर्रुपाट पहाड़ी में शरण ले ली गौरील्ला लडाई चलता रहा वीर नारायण सिंह ने अपनी वीरता बहादुरी से अंग्रेजों का मुकाबला किया और अंग्रेजों को बहुत परेशान किया और अपने आखिरी दम तक बहादुरी से लड़ते रहे!
संबलपुर के जमीदार सुरेंद्र साए को छोड़कर सभी जमीदारों ने अंग्रेजों का साथ दिया तथा वीर नारायण के साथ गद्दारी कर दी जमीदारों की विश्वासघात के कारण इतने बड़े संघ को पराजय झेलना पड़ा अंग्रेज सिपाहियों से लड़ते लड़ते वीर नारायण का गोला-बारूद खत्म हो गया और वीर नारायण सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया और अंत में उन्हें मृत्युदंड सुनाया गया!
10 दिसंबर 18 57 को रायपुर के चौराहे पर वीर नारायणसिंह को फांसी दे दी गई! बाद में उनके शव को तोप से उड़ा दिया गया!
,'महानदी की घाटी और छत्तीसगढ़ के माटी के महान सपूत शहीद वीर नारायण को राज्य का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी होने का गर्व प्राप्त है!'
छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी |
चाहते तो अंग्रेजों के राज में भी आराम की जिंदगी बिताते किंतु उन्होंने आजादी को चुना और अंग्रेजों से बगावत की! |
सम्मान:
प्रथम स्वतंत्रता सेनानी:
गोंडवाना के शेर शहीद वीर नारायण सिंह को छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी का गौरव प्राप्त है!
जयस्तंभ चौक रायपुर:
जिस जगह पर वीरनारायण सिंह को फांसी दी गई थी वहां स्वतंत्रता के पश्चात जयस्तंभ चौक का निर्माण किया गया जो आज भी छत्तीसगढ़ के उस वीर सपूत की याद दिलाते हैं!
पोस्टल स्टांप:
19 87 को शहीद वीर नारायण सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी 130 बरसी पर 60 पैसे का स्टांप जारी किया गया जिसमें शहीद वीर नारायण सिंह को तोप के आगे बांधे दिखाया गया है!
postal stamp shahid veer Narayan sing |
अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम:
2008 में उनके सम्मान में रायपुर क्रिकेट संघ ने शहीद वीर नारायण सिंह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण कराया जोकि कोलकाता के ईडन गार्डन के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा स्टेडियम है जिसमें एक बार में 65000 दर्शन बैठ सकते हैं!
राजा राव पठार मेला:
छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद वीर नारायण सिंह को राजधानी रायपुर से 98 किलोमीटर दूर रायपुर जगदलपुर नेशनल हाईवे पर जिला बालोद में राजा राव पठार नामक स्थान पर हर वर्ष 10 दिसंबर "शहीद दिवस "के रूप में मनाया जाता है जिसमें गोंड जाति तथा अन्य आदिवासियों के द्वारा एक भव्य मेले का किया जाता है तथा अपनी परम प्रेम संस्कृति एवं परंपरा के साथ इस मेले का आयोजन किया जाता है!
nice post sir\
ReplyDelete𝓗𝓲 𝓢𝓪𝓶𝓮𝓮𝓻 a great initiative... But two things I would like to add here first the details in the net are not absolutely correct... He was not fired by the cannon.... In 2015 my Mom published the first historic novel of Chhattisgarh in English with a grant from CG cultural dept. Titled 'Krantiveer Narayan Singh
ReplyDeleteHello ASSHOK..thank you!
Deleteand thank you for your imformation